गंगा
हिंगराज से अवतरित तुम, आर्यवर्त में फलित फूलित, उतरांचल में शिशु रूप, मगध में युवावस्था हो, बांग्ला में प्रौढ़ बन, खाड़ी में तपस्विनी तुम, देवी तुम देव प्रिय तुम, तुम महेश और काली तुम, रूप तुम, धुप तुम, जय तुम विजय तुम, आदरणीय तुम पुजनिय तुम, ऋषीकेश तुमसे, हरिद्वारा तुमसे, प्रयाग, बनारस, पटना की जीवन रेखा हो, कण- कण यस तरित तुममे, अमृत की तुम धारा हो, मगध तुमसे मौर्य तुमसे, चाणक्य तुमसे अशोक तुमसे, जीवन की आधार तुम, मृत्यु की उद्धार तुम, प्रेम की प्रतिमा, क्रोध का आकार तुम पुण्य की देवी पाप की हाहाकार तुम, अंत तुम अनंत तुम, भारत की तुम ढाल हो, मेरे शब्दों का आकार तुम, मेरे शब्दों का आधार तुम, हे गंगा तुम निराकार हो।। वेद प्रकाश ...